बचपन के दिनों को याद करके मैंने दो साल पहले शब्दों के माध्यम से उस सुनहरे पल को इकठ्ठा करने की कोशिश की थी, और वो कोशिश आज पहली बार आप सब के सामने प्रस्तुत है:
बड़ा तड़पाते है वो बचपन।
वो माँ के गोद में लोरियां सुनना,
और सुनते ही रहना।
वो बारिश में भीगना,
और माँ का डाँटना।
याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते हैं वो बचपन।
रेत के घरों को बनाना,
और गिरते हुए देखकर अफ़सोस
जाताना - " उफ़ ! फिर गिर गया। "
कागज़ की नावों को बनाना,
और बारिश की बूंदों के बीच चलाना।
डूबने पर फिर नई नाव बनाना।
याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते हैं वो बचपन।