July 22, 2010

बचपन के दिन

     बचपन के दिनों को याद करके मैंने दो साल पहले शब्दों के माध्यम से उस सुनहरे पल को इकठ्ठा करने की कोशिश की थी, और वो कोशिश आज पहली बार आप सब के सामने प्रस्तुत है:


याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते है वो बचपन
वो माँ के गोद में लोरियां सुनना,
और सुनते ही रहना।
वो बारिश में भीगना,
और माँ का डाँटना।
याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते हैं वो बचपन।
रेत के घरों को बनाना,
और गिरते हुए देखकर अफ़सोस 
जाताना - " उफ़ ! फिर गिर गया। "
कागज़ की नावों को बनाना,
और बारिश की बूंदों के बीच चलाना
डूबने पर फिर नई नाव बनाना
याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते हैं  वो बचपन

July 15, 2010

ऑक्टोपस, फुटबॉल और आस्था

     स्पेन के फीफा विश्वकप जीतने के साथ ही पॉल ऑक्टोपस के समर्थकों में भारी इज़ाफा हुआ है और साथ ही आस्था की आड़ में अंधविश्वास को बढावा देने वालों को मजबूती भी मिली है क्योंकि अंधविश्वास तो आस्था की पराकाष्ठा से ही पैदा होता है। ऑक्टोपस की भविष्यवाणी के साथ ही एक बार फिर पूरे विश्व में भविष्यवाणी की चर्चा गर्म हो गई है। क्या सच में भविष्यवाणी नाम की कोई चीज़ होती है? आजकल सबके मन में यह प्रश्न उथल-पुथल मचाये हुए है। ऑक्टोपस बाबा ने जर्मनी के हार की भविष्यवाणी क्या कर दी पूरे विश्व में यह बात बहस का मुद्दा बन गई। जहाँ कभी इस बाबा की जय-जयकार होती थी वहीँ आज आलम ये है की स्पेन के समर्थकों को छोड़कर बाकी टीमों के समर्थकों के कारण इस बाबा की जान पर बन आई है। खेल से टोटकों और भविष्यवाणियों का रिश्ता तो बहुत पुराना है। क्रिकेट से लेकर फुटबॉल तक इसके उदहारण हैं। पुराने क्रिकेट खिलाड़ियों से लेकर वर्तमान फुटबाल  खिलाड़ी तक इससे अछूते नहीं हैं। क्या किसी टीम के हार का कारण सिर्फ़ इनकी काली पोशाक हो सकती है? नहीं ना। पर कुछ लोग ये सोच बना बैठे हैं। ख़ैर, ऑक्टोपस बाबा की महत्ता को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता, खासकर स्पेन समर्थकों की नज़रों में। स्पेन की जीत में बाबा का आशीर्वाद तो था ही पर फाइनल में स्पेन के खिलाडियों ने जो खेल दिखाया उसका तो कोई भी कायल हो जाये। जीत का श्रेय बाँटने में स्पेन के खिलाड़ियों को भुलाया नहीं जा सकता 

July 7, 2010

वो चेहरा

शाम का वक़्त था,
बस में जा रहा था मैं,
सहसा...
एक चेहरा ,
बन गया मेरे लिए,
कौतुहल का विषय,
लगा देखने मैं,
अन्य चेहरों को,
समझ में आया यह,
किसी का पीला, तो
किसी का काला
पड़ गया है चेहरा,
रंग अज़ब-गज़ब के मिले
देखने को चेहरे में
तब...
अनायास, हुआ सोचने को मजबूर,
कि, आदमी है कठपुतली
और समाज का ही एक वर्ग,
है इनको नचाने वाला
इसीलिए...
रंग-बिरंगे से लगते हैं चेहरे
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