July 7, 2010

वो चेहरा

शाम का वक़्त था,
बस में जा रहा था मैं,
सहसा...
एक चेहरा ,
बन गया मेरे लिए,
कौतुहल का विषय,
लगा देखने मैं,
अन्य चेहरों को,
समझ में आया यह,
किसी का पीला, तो
किसी का काला
पड़ गया है चेहरा,
रंग अज़ब-गज़ब के मिले
देखने को चेहरे में
तब...
अनायास, हुआ सोचने को मजबूर,
कि, आदमी है कठपुतली
और समाज का ही एक वर्ग,
है इनको नचाने वाला
इसीलिए...
रंग-बिरंगे से लगते हैं चेहरे

2 comments:

  1. बिलकुल सही - वो भी तो हममें से ही हैं

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  2. kabhee paristhitiya hee hamara rang badaltee rahtee hai.......
    bahut sunder abhivykti .......

    ReplyDelete

तेजी से भागते हुए कालचक्र में से आपके कुछ अनमोल पल चुराने के लिए क्षमा चाहता हूँ,
आपके इसी अनमोल पल को संजोकर मैं अपने विचारों और ब्लॉग में निखरता लाऊंगा।
आप सभी स्नेही स्वजन को अकेला कलम की तरफ से हार्दिक धन्यवाद !!

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