शाम का वक़्त था,
बस में जा रहा था मैं,
सहसा...
एक चेहरा ,
बन गया मेरे लिए,
कौतुहल का विषय,
लगा देखने मैं,
अन्य चेहरों को,
समझ में आया यह,
किसी का पीला, तो
किसी का काला
पड़ गया है चेहरा,
रंग अज़ब-गज़ब के मिले
देखने को चेहरे में।
तब...
अनायास, हुआ सोचने को मजबूर,
कि, आदमी है कठपुतली
और समाज का ही एक वर्ग,
है इनको नचाने वाला।
इसीलिए...
रंग-बिरंगे से लगते हैं चेहरे।
बिलकुल सही - वो भी तो हममें से ही हैं
ReplyDeletekabhee paristhitiya hee hamara rang badaltee rahtee hai.......
ReplyDeletebahut sunder abhivykti .......