बचपन के दिनों को याद करके मैंने दो साल पहले शब्दों के माध्यम से उस सुनहरे पल को इकठ्ठा करने की कोशिश की थी, और वो कोशिश आज पहली बार आप सब के सामने प्रस्तुत है:
बड़ा तड़पाते है वो बचपन।
वो माँ के गोद में लोरियां सुनना,
और सुनते ही रहना।
वो बारिश में भीगना,
और माँ का डाँटना।
याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते हैं वो बचपन।
रेत के घरों को बनाना,
और गिरते हुए देखकर अफ़सोस
जाताना - " उफ़ ! फिर गिर गया। "
कागज़ की नावों को बनाना,
और बारिश की बूंदों के बीच चलाना।
डूबने पर फिर नई नाव बनाना।
याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते हैं वो बचपन।
बहुत याद आते हैं वो बचपन,
ReplyDeleteये तो बहुत अच्छा लिखा है. मैं तो यही सब करती हूँ.
ReplyDelete'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
Sach mein bachpan ke din pyare lagte hai..
ReplyDeleteBachpan ke dinon kee yaad taaji karne ke liye dhanyavad
सही कहा...बचपन के दिन भी क्या दिन थे...उड़ते फिरते तितली बन...
ReplyDeleteनीरज
बचपन बड़ा प्यारा होता है,
ReplyDeleteसबका ही दुलारा होता है।
लाजवाब ... क्या खूब है ....बचपन की यादें इंसान को हमेशा गुदगुदाती हैं ... अच्छे से बुना है आपने इनको रचना
ReplyDeleteबहुत खूब ,बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी ......
ReplyDeleteसही बात है बचपन को कोई कभी भी नहीं भूल सकता है.
ReplyDeletenice poem........bachapan to abhinn ang hai vyktitv ka......
ReplyDeletesunder prastuti .