August 31, 2010

अकेला या अकेली

     बहुत दिन से दिल में इच्छा हो रही थी की मैं भी अपने विचारों को लोगों तक पहुचाऊं। इसके लिए मैं एक अच्छे मंच की तलाश में था। मेरे एक मित्र ने मुझे ब्लॉग लेखन का सुझाव दिया और अपने ब्लॉग का पता भी दिया। मित्र के ब्लॉग को देखने के बाद मुझे मेरी मंजिल दिखाई देने लगी। जरिया तो मुझे मिल गया अब बारी थी उसको एक पहचान देने की। मेरे मित्रों ने भी मुझे बहुत से सुझाव दिए। अंततोगत्वा ब्लॉग को पहचान के तौर पर अकेला कलम नाम मिला। चूँकि मैं 'राम की नगरी' से संबंध रखता हूँ, जहाँ बच्चों को व्याकरण की दृष्टी से शुद्ध हिन्दी का ज्ञान विरासत में मिलता है। आगे की शिक्षा-दीक्षा भी मैंने हिन्दी में विशेष दक्षता से पूरी की। इन सब कारणों से मुझे अकेला कलम नाम स्वीकार करने में असहजता महसूस होने लगी थी। मेरे गुरु जी ने भी इसको व्याकरण की दृष्टी से गलत ठहराया। अकेला कलम की एक सच्चाई यह भी है की मैंने इसको मिटा दिया था और अपने नाम से एक नए ब्लॉग (Satya`s Blog) को पहचान दी। फिर क्या था अकेला कलम की उलझन तो दूर हो गई। परन्तु अब ये अकेला कलम मैं और मेरे मित्रों के बीच बहस का मुद्दा बन गया। कुछ पक्ष में थे तो कुछ इसके विपक्ष में। इस बहस का हल ये निकला की मैं त्रुटि को नजरंदाज करके अकेला कलम को वापस ले आया। धीरे-धीरे अकेला कलम की आदत सी होने लगी। मेरे कुछ स्वजन समय-समय पर मेरी इस त्रुटि को ताजगी प्रदान करते रहे हैं। हाल ही में राजेश उत्साही जी तथा अख्तर खान अकेला साहब ने भी मेरा ध्यान इस त्रुटि की ओर आकृष्ट करने की खुबसूरत पहल की। जिनका मैं तहे-दिल से शुक्रगुजार हूँ।
     अब मैं इस प्रकरण पर आप सब को आदरणीय मानते हुए यह चाहता हूँ की आप सभी लोग मेरी सहायता करें। आप सभी के बहुमूल्य विचारों को मैं सर्वोपरि मानकर अनुसरण करूँगा। इस ब्लॉग का नाम अकेला कलम (जो की व्याकरण की दृष्टी से सही नहीं है) ही होना चाहिए या फिर अकेली कलम होना चाहिए। मैंने आप सब को अपना मानकर दिल की बात आप सब के सामने पेश कर दी। अब आप अपने विचारों के माध्यम से मुझे इस प्रकरण का हल निकालने में मेरी सहायता करें। 
धन्यवाद सहित। 
- सत्यप्रकाश पाण्डेय




August 26, 2010

पुनरागमन

वर्षों से दबा हुआ , 
एक जीवित , 
मृत व्यक्ति , 
उठ खड़ा हुआ, 
वह आज , 
कर रहा था , 
वर्षों से अपनी , 
चेतना का विकास । 
परिपक्व हो उठा , 
नहीं जरुरत उसको , 
किसी के मार्गदर्शन की , 
करके प्रण वह , 
जीवित व्यक्ति हो 
उठा है , पुनः जीवित , 
अबकी कर देगा 
तहस - नहस , उन लोगों को 
जिसने , जीते जी 
कर दिया , उसको 
मृत सदृश ।

August 13, 2010

आजादी स्पेशल

     मुबारक हो हम आजादी की 63वीं वर्षगाँठ  मनाने जा रहे हैं। टेलीवीजन के सभी चैनल अपनी टी. आर. पी. बढ़ाने के लिए तरह-तरह के कार्यक्रम दिखाने को बेताब हैं। 15 अगस्त के दिन कोई भी चैनल नहीं चाहता कि उसके दर्शक किसी दूसरे चैनल पर फिसलें। स्कूलों में तरह-तरह के रंगारंग कार्यक्रम होंगे। कालेजों में ये दिन प्रेमी-युगलों के लिए सौगात लायेगा। बाजारों में विशेष ऑफर चल रहे हैं लेकिन सिर्फ़ 15 अगस्त तक ही। आजकल सड़कों कि लाल बत्तियों पर पवित्र तिरंगा लिए वो लोग मिलेंगे जिनको सरकार कॉमनवेल्थ के दौरान विदेशी मेहमानों को दिखाना भी नहीं चाहती। हमारे ये ग़रीब भाई इन दिनों पवित्र तिरंगा बेचकर अपना पेट भरेंगे। इन ग़रीबों के लिए तो 15 अगस्त का मतलब सिर्फ़ उन अच्छे दिनों से है जब ये आराम से अपना पेट भर पाते हैं। कहने को तो हम 1947 में ही आजाद हो गए। आजादी के बाद हमें मिला लूट, बेईमानी, भ्रष्टाचार और भी ना जाने क्या-क्या सौगात में मिला
     इस  समय देश में कोई भी ऐसा महकमा नहीं है जहाँ हम सिर्फ़ और सिर्फ़ ईमानदारी कि बात कर सकें। आज हमारा देश हर तरफ से दुश्मनों से घिरा है। भारत का सिरमौर कहे जाने वाले कश्मीर में अलगाववादी सक्रिय हैं। थोड़ा और आगे बढ़ें तो और भी बब्बर आतंकी मिलेंगे। इस तकनीकी युग में जहाँ एक तरफ बहुत तेजी से पश्चिमीकरण हो रहा है वहीं पंच परमेश्वर के ऊपर कोई भी बदलाव नज़र नहीं आ रहा। मध्य भारत का गुंडा राज किसी से छिपा नहीं है। पूर्वी भाग में तो उल्फा के साथ-साथ बड़े पैमाने पर मँहगी जंगली लकड़ियों और विलुप्त होते जानवरों के तस्करों का राज कायम है। पश्चिम को देखें तो जातिगत और क्षेत्रगत समीकरण नहीं बन पा रहे हैं। यहाँ लोगों को देश से नहीं अलग राज्य से मतलब है। दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में मावोवादी अपनी पकड़ मजबूत बनाने में लगे हैं। नेता खुलेआम इनके समर्थन में सड़कों पर आ गए हैं। मँहगाई दर हर हफ्ते ऊपर नीचे हो रही है। ये मँहगाई तो सरकार के संभाले नहीं संभलती। इतना सब कुछ होने के बाद भी हम सब कुछ भुला कर आजादी मनायेंगे
     हम भले ही 15 अगस्त को लाल किला की प्राचीर पर प्रधानमंत्री को तिरंगा फहराते ना देखें पर चैनलों पर ऐक्टरों को नाचते हुए जरुर देखेंगे। इंडिया गेट पर जाकर शहीदों को नमन भले ही ना करें पर बाजार जा कर जेबें जरुर ढ़ीली करेंगे। जिनके दिलों में थोड़ा बहुत देशभक्ति किसी कोने में बची है वो 15 अगस्त को 2-4 देशभक्ति गीत चला देंगे। तो इस तरह आप सभी को जश्न-ए-आजादी कि हार्दिक शुभकामनाएँ
सारे जहाँ से अच्छा, भारत देश है मेरा

August 4, 2010

कॉमनवेल्थ गेम्स : संक्षिप्त रिपोर्ट

     कॉमनवेल्थ की बयार इतनी तेज चल रही है कि इसमें सभी अपनी - अपनी पतंगे उड़ाना चाहते हैं। आयोजकों को तिजोरियां भरने का सुनहरा मौका मिला, सरकार को मंहगाई बढ़ाने का मौका मिला और विपक्षी पार्टियों को नमक - मसाला लगा मुद्दा मिला। सभी अपनी - अपनी पतंगे इस तेज हवा में उड़ाना चाहते हैं। गरीबों के दुःख में तो कॉमनवेल्थ ने आग में घी का काम किया। किसी ने सच ही कहा है -
अंधेर नगरी चौपट राजा
टका शेर भाजी टका शेर खाजा
     दीपक के बुझने से पहले लौ तेज हो जाती है उसी तरह इस हवा के बंद होने कि उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और कॉमनवेल्थ को लेकर हर तरह का हो-हल्ला मचा है। एक दुसरे के ऊपर आरोप-प्रत्यारोप भी अपने चरम पर है। दिल्ली को हर कोने से चाक-चौबंद किया जा रहा है पर तैयारियों को देखकर तो ऐसा लग रहा है कि जैसे तैयारी के नाम पर झाड़ू-पोछा लगाया जा रहा हो। इस झाड़ू-पोछे के लिए 440 मिलियन डॉलर का अनुमान लगाया गया था जो बढ़ते-बढ़ते 2.5 बिलियन डॉलर से भी ऊपर पहुँच गया। कहीं नई सड़कें धँस रहीं हैं तो कहीं टाईलें उखड़ रहीं हैं। स्टेडियमों को चाक-चौबंद करने के लिए 150 करोड़ का अनुमान था जो बढ़कर 4000 करोड़ से भी ऊपर चला गया और स्टेडियम अभी भी दुरुस्त नहीं हो पायें हैं। दिल्ली सरकार तो अनुमान लगाने में फेल हो गई जिसका फल आम जनता को महंगाई के रूप में मिला। अगर कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत कि मटिया-पलीद हुई तो इसकी सारी जिम्मेदारी सरकार कि होगी। हमें अपनी मजबूती देखने के बाद ही ओखल में सिर देना चाहिए था। तैयारियों के खर्चे को लेकर सही अनुमान लगा होता तो शायद आम जनता को इतनी महंगाई ना झेलनी पड़ती। असली आंकड़ों के मुताबिक हम अभी उस लायक नहीं हुए हैं कि इतने बड़े आयोजन का जिम्मा ले सकें। ना जिम्मा लेते ना ही इसकी आड़ में बढ़ी महंगाई कि मार झेलते। सच तो ये है कि विकासशील देशों के लिए इतने बड़े आयोजन कभी भी फायदेमंद साबित नहीं हो सकते
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