वर्षों से दबा हुआ ,
एक जीवित ,
मृत व्यक्ति ,
उठ खड़ा हुआ,
वह आज ,
कर रहा था ,
वर्षों से अपनी ,
चेतना का विकास ।
परिपक्व हो उठा ,
नहीं जरुरत उसको ,
किसी के मार्गदर्शन की ,
करके प्रण वह ,
जीवित व्यक्ति हो
उठा है , पुनः जीवित ,
अबकी कर देगा
तहस - नहस , उन लोगों को
जिसने , जीते जी
कर दिया , उसको
मृत सदृश ।
जीवित व्यक्ति ...जो मृतप्राय: था ..फिर जीवित हो उठा ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteओह, अच्छी लगी आशावादिता। अन्यथा लगता नहीं कि मृतप्राय उठ्ठेगा और क्रांति कर देगा।
ReplyDeleteबहुत देखा क्रांतियों को कॉम्प्रोमाइज करते।
बहूत खूब!...इतनी वेदनाएं वह कब तक सहन करता रहेगा!...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, धन्यवाद!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDelete.
ReplyDeleteIt seems you have gone through a phase of realization and a realized soul truly becomes revolutionary !
I believe in the beautiful lines you have created.
.
प्रभावशाली अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteअच्छी रचना ...प्रभावशाली ।
ReplyDeleteमृतप्राय जब उठता है तब उसके पास खो देने के लिये कुछ बचता नहीं है।
ReplyDeleteअच्छी रचना जी धन्यवाद
ReplyDeleteअबके कर देगा
ReplyDeleteतहस-नहस , उनलोगों को
जिसने जीतेजी कर दिया उसे
मृत सदृश्य ....
हर कवी में आक्रोश होना जरुरी है .....
और वो आपकी इस रचना में नज़र आ रहा है ......बधाई ....!!
पुनरागमन जिजीविषा की कविता लगी. भावयति पर नज़र डालने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteजिस जिजीविषा ने उसे पुनः जीवित किया है वही उसे उन परिस्थितियों ,जिनके कारण वह मृतप्राय हुआ था, को तह नहस कर के पुनर्निर्माण कर सकती है.
ReplyDeleteज्ञान भैया के शब्द में अपने शब्द मिलाती हूँ मैं...
ReplyDeleteउर्जा से उत्प्लावित बहुत ही सुन्दर रचना...
bkhubi sanjoye hain vedna ke ahsas
ReplyDeleteपहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए!
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस शानदार और उम्दा रचना के लिए बधाई!
punaragaman...bahut achchi uttam abhivyakti.aur bhi padhna chahungi.keep writing.
ReplyDeletekalpana ki tajgi rachna mein dikh rahi hai
ReplyDeleteगहरी सोच लिए रचना है .. आक्रोश है इस रचना में ... जीवन पाने की ललक है ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...बधाई.
ReplyDelete____________________
'पाखी की दुनिया' में अब सी-प्लेन में घूमने की तैयारी...
शुक्रिया सत्यप्रकाश जी ब्लाग पर आने के लिए । यहां आकर भी अच्छा लगा। सुंदर भाव लिए है आपकी कविता। शायद पहले भी किसी ने आपका ध्यान इस ओर खींचा हो कि आपके ब्लाग का नाम अकेला कलम है। मेरे हिसाब से उसे अकेली कलम होना चाहिए। क्योंकि व्याकरण के लिहाज से कलम स्त्रीलिंग है।
ReplyDelete@ उत्साही जी,
ReplyDeleteउत्साही जी सुझाव देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद,
जब से अकेला कलम वजूद में आया तब से यह विचार मेरे मन में उथल पुथल मचाये हुए है की "अकेला" ठीक रहेगा या फिर "अकेली", मेरे कुछ स्नेही स्वजनों ने कहा शीर्षक कुछ ऐसा होना चाहिए जो भीड़ से अलग हो, मुझे भी लगा हाँ सही बात है भीड़ में अलग दिखने के लिए कुछ तो उल्टा करना पड़ेगा,
मैंने नामकरण तो कर दिया पर फिर भी मैं खुद भी इस शीर्षक को स्वीकार करने में असहजता महसूस कर रहा हूँ, और इस मुद्दे का हल ये निकला की उद्देश्य शीर्षक नहीं मुख्य उद्देश्य तो अपने विचारों को उजागर करना है और इस तरह यह मुद्दा हासिये पर चला गया, आज फिर यह मुद्दा उठा है तो अब इसको हल करने के लिए आप सभी का सहयोग आपेक्षित है।
कृपया अपने बहुमूल्य सुझाव दें।
सुन्दर सकारात्मक अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।
ReplyDeleteसत्य प्रकाश पाण्डेय जी
ReplyDeleteचेतना के बाद का आक्रोश अवश्य रंग लाएगा ।
शुभकामनाओं सहित …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
qlm akeli hi hoti he jo top or misaayl hi nhin prmaanu bm se bhi zyaadaa taaqtvr khtrnaak hoti he iskaa istemaal prmaanu bm ki trh jntaa ke fayde ke liyen bhi kiyaa jaata he or iska durupyog jntaa ke vinaash ke liyen prmaanu bm ki trh bhi kiya jaa kta he bdhaayi ho bhaayi khub likhaa he men heraan rh gyaa. akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDeleteअबकी कर देगा
ReplyDeleteतहस - नहस , उन लोगों को
जिसने , जीते जी
कर दिया , उसको
मृत सदृश ।
Ye hui na baat!
Ise kahte hain jijivisha!Behad sundar rachana!
ReplyDeleteachhi rachana ke liye badhai......
ReplyDeleteprernadayi panktiyan hain.
वाह !!! कितने अच्छे विचार है .
ReplyDeleteदबी हुई चेतना है जो मृत व्यक्ति की भांति पड़ी रहती है...उम्मीद जगाती आपकी कविता की ये सोयी चेतना जग जाएगी..
ReplyDeleteएक भावपूर्ण रचना !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर विचारों से सजी रचना ..बधाई.
ReplyDelete________________
'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
blog to bahut sundar hai aapka ...
ReplyDeletevisvas hai bahut kuchpadhne ko milega.
अबकी कर देगा
ReplyDeleteतहस - नहस , उन लोगों को
जिसने , जीते जी
कर दिया , उसको
मृत सदृश ।
badhiya...to the point baat kahi
चोट खाए इस इंसान के इरादे बड़े खतरनाक लगते हैं।
ReplyDeleteapni yah behtareen rachna vatvriksh ke liye bhejen
ReplyDeletebahut sundar likha hai apne, apke lekh wicharottejak bhi hai aur anukarniy bhi! mera sadhuwad.kripya mere blog ko follow karen.
ReplyDeleteपुनरागमन को आप वटवृक्ष तथा
ReplyDeleteचर्चा मंच पर भी पढ़ सकते हैं।