July 22, 2010

बचपन के दिन

     बचपन के दिनों को याद करके मैंने दो साल पहले शब्दों के माध्यम से उस सुनहरे पल को इकठ्ठा करने की कोशिश की थी, और वो कोशिश आज पहली बार आप सब के सामने प्रस्तुत है:


याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते है वो बचपन
वो माँ के गोद में लोरियां सुनना,
और सुनते ही रहना।
वो बारिश में भीगना,
और माँ का डाँटना।
याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते हैं वो बचपन।
रेत के घरों को बनाना,
और गिरते हुए देखकर अफ़सोस 
जाताना - " उफ़ ! फिर गिर गया। "
कागज़ की नावों को बनाना,
और बारिश की बूंदों के बीच चलाना
डूबने पर फिर नई नाव बनाना
याद आते हैं वो बचपन,
बड़ा तड़पाते हैं  वो बचपन

9 comments:

  1. बहुत याद आते हैं वो बचपन,

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  2. ये तो बहुत अच्छा लिखा है. मैं तो यही सब करती हूँ.

    'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.

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  3. Sach mein bachpan ke din pyare lagte hai..
    Bachpan ke dinon kee yaad taaji karne ke liye dhanyavad

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  4. सही कहा...बचपन के दिन भी क्या दिन थे...उड़ते फिरते तितली बन...
    नीरज

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  5. बचपन बड़ा प्यारा होता है,
    सबका ही दुलारा होता है।

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  6. लाजवाब ... क्या खूब है ....बचपन की यादें इंसान को हमेशा गुदगुदाती हैं ... अच्छे से बुना है आपने इनको रचना

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  7. बहुत खूब ,बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी ......

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  8. सही बात है बचपन को कोई कभी भी नहीं भूल सकता है.

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  9. nice poem........bachapan to abhinn ang hai vyktitv ka......
    sunder prastuti .

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तेजी से भागते हुए कालचक्र में से आपके कुछ अनमोल पल चुराने के लिए क्षमा चाहता हूँ,
आपके इसी अनमोल पल को संजोकर मैं अपने विचारों और ब्लॉग में निखरता लाऊंगा।
आप सभी स्नेही स्वजन को अकेला कलम की तरफ से हार्दिक धन्यवाद !!

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